नमोतस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्म बुद्धस्स।
आज का दिन बौद्ध जगत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। विश्व के बौद्ध 2565वीं त्रिविध बुद्ध पूर्णिमा अर्थात वैशाख पूर्णिमा अपने-अपने स्थान पर मना रहे हैं।यहाँ त्रिविध कहने का अर्थ है कि तथागत बुद्ध ही एकमात्र ऐसे शास्ता थे जिनका जन्म, बुद्धत्व तथा निर्वाण की प्राप्ति वैशाख पूर्णिमा के दिन हुई थी। इस प्रकार की घटना अन्य किसी के साथ घटित नहीं हुई है। उन्होंने बुद्धत्व की प्राप्ति के लिए कितने कष्ट सहे ये बात हम सब जानते हैं उसकी व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं लगती है। कुछ देशों में बुद्ध पूर्णिमा का आयोजन पूरे महीने भर चलता है। लोग विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं तथा परित्राण-पाठ करते हैं। तिब्बत, मंगोलिया,चीन,हिमालयी क्षेत्र आदि में सम्पूर्ण त्रिपिटक का पाठ करते हैं।
बुद्ध पूर्णिमा पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाने का अभिप्राय बुद्ध को स्मरण करना होता है, उनकी स्तुति करना होता है कि आपने हमें बौद्ध धर्म दर्शन रूपी अमूल्य धरोहर प्रदान की है। आपके द्वारा सुझाये गए मार्ग पर चलकर असंख्य प्राणियों ने इस भवचक्र से मुक्ति पाई है। आपका मार्ग अतुलनीय है। हर वर्ष की तरह इस वर्ष बुद्ध पूर्णिमा को उतने व्यापक स्तर पर नहीं मनाया जा रहा है क्योंकि विश्व वैश्विक महामारी कोरोना से जूझ रहा है।
बुद्ध को याद करने के लोगों के अलग-अलग तौर तरीके होते हैं, जो कि उनके स्थानीय कला एवं संस्कृति से प्रभावित होते हैं। कहीं-कहीं बड़ी-बड़ी झांकियाँ निकाली जाती हैं तो कहीं बुद्ध विहारों में बुद्ध वचनों का पाठ एवं देशना होती है। बौद्ध लोग इस पावन अवसर पर धर्म देशनाओं का आयोजन करते हैं जहाँ योग्य भिक्षुओं एवं वक्ताओं द्वारा धम्म-प्रवचन दिया जाता है।
आपने अक्सर देखा होगा कि लोग कहीं खीर दान करते हैं, भोजन बाँटते हैं, शर्बत आदि खाद्य पदार्थों का वितरण करते हैं। बुद्ध विहारों में भिक्षुओं को भोजन एवं धन दान देते हैं। इसके अलावा गरीबों को आवश्यक वस्तुयें दान देते हैं जिससे कि वे लोग भी समाज में रहकर अपना जीवन यापन कर सकें।
उक्त क्रियाओं की तरह तमाम अन्य क्रियाएं हैं जिन्हें बौद्ध लोग इस पावन अवसर पर पूर्ण श्रद्धा के साथ करते हैं जो कि पूण्य के संचय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। बुद्ध ने 10 पारमिताओं का उपदेश दिया हैं उसमें से दान पारमिता अत्यंत महत्वपूर्ण है। दान हम तभी दे सकते हैं जब हमारे अंदर लालच न हो या कम हो। लालच के अधीन रहकर हम देने के बजाय लेने की चेष्टा करते हैं इस वजह से दान देने में असमर्थ हो जाते हैं। दान का अर्थ यह नहीं कि आप बड़ी संख्या में किसी वस्तु को दें बल्कि आप छोटी सी भी वस्तु देने में समर्थ हैं तो देनी चाहिए।
बौद्ध धर्म में पारमिताओं को पूर्ण करने के पीछे हमारी प्रेरणा बहुत महत्वपूर्ण है।अगर हमारी प्रेरणा ठीक नहीं होगी तो पारमिताओं का अभ्यास असंभव हो जायेगा। बिना पारमिताओं को पूर्ण किये बुद्धत्व की प्राप्ति करना तो दूर निर्वाण प्राप्त करना भी आकाश के फूल के समान होगा। पारमिताओं को पूर्ण करना कोई एक या दो दिन की बात नहीं है बल्कि महीनों, वर्षों एवं जन-जन्मों का वक्त लगता है।
ये बात तो तय है कि बुद्ध के द्वारा सुझाये गए मार्ग में लेशमात्र भी आडम्बर नहीं है। बुद्ध ने सबसे पहले अपने उद्बोधन में कहा कि दुःख है। उन्होंने यह नहीं कहा कि सुख है। चाहते तो लोगों को रिझाने और अपने अनुयायियों की संख्या में वृद्धि करने के लिए कह सकते थे कि सुख है। जो सत्य है वो है। मैं ये खंडन नहीं कर रहा कि सुख नहीं है मगर दुःख को नष्ट करोगे तभी तो सुख आयेगा।
तथागत बुद्ध उदानवर्ग टीका में कहते हैं कि-न तो मैं किसी प्राणी के पापों को जल से धुल सकता हूँ, न हाथ से हटा सकता हूँ और न ही अपने ज्ञान को दूसरों में प्रेषित कर सकता हूँ। फिर मन में प्रश्न उठता है कि मैं तो बुद्ध की वंदना करता हूँ, दान आदि देता हूँ तो फिर बुद्ध मेरी मदद क्यों नहीं करते हैं? इस प्रकार के प्रश्नों का मानसिक पटल पर आना स्वाभाविक है तथा आते भी हैं।
जिस प्रकार से शिक्षक हमें पढ़ाता है, पढ़ाने के बाद घर पर पढ़ने के लिए गृहकार्य देता है और कहता है कि अगले दिन करके लाना मैं जाँच करूँगा किसने किया किसने नहीं। ऐसा तो नहीं होता है कि शिक्षक हर वक्त हमारे आसपास ही बना रहे। वह हमारा सिर्फ मार्गदर्शन कर देता है कि किस प्रकार से अपने विषय में पारंगत होना है। उसी प्रकार से बुद्ध ने भी हमें बुद्धत्व या निर्वाण प्राप्त करने के लिए गृहकार्य रूपी सत्य मार्ग दिया है,उसपर हम अगर चलेंगे, उनकी बात सुनेंगे तो उतीर्ण (पास) होंगे अन्यथा हर वर्ष की भांति अनुतीर्ण (फ़ैल) होने से कौन बचा सकता है।
तथागत बुद्ध कहते हैं कि मेरे द्वारा सुझाये गए मार्ग पर चलकर आप स्वयं बुद्धत्व या निर्वाण की प्राप्ति कर सकते हो। प्रतीत्यसमुत्पाद, चार आर्य सत्य, आर्य अष्टांगिक मार्ग, शून्यता, 37 बोधिपाक्षिक धर्म आदि का अभ्यास करके बुद्ध बन सकते हो। बुद्ध ने कहा मैं मार्गदाता हूँ न कि मोक्ष अथवा निर्वाण दाता।
बुद्ध कहते हैं-अत्त दीपो भव,अत्त नाथो भव। उन्होंने सब कुछ हम पर छोड़ा है कि बुद्ध बनना है तो आपको ही अभ्यास करना होगा, निर्वाण प्राप्त करना है तब भी आपको ही अभ्यास करना है तथा बोधिसत्व बनना है तो भी आपको ही मेरे मार्ग का अनुसरण करना होगा। बुद्ध विश्व के एकमात्र शास्ता हैं जिन्होंने महाबलतंत्रराज सूत्र में कहा है कि-ओ भिक्षुओ तथा विद्वानो! जिस तरह सोने की परीक्षा रगड़कर, काटकर तथा पिघलाकर की जाती है उसी प्रकार से मेरी शिक्षाओं का परीक्षण करो तथा स्वीकार करो। परन्तु इसलिए नहीं कि तुम मेरा सम्मान करते हो।
बुद्ध कहते हैं पहले जानो फिर मानो जबकि अन्य कहते हैं कि पहले मान लो जानने की जरूरत नहीं है क्योंकि जो मैंने कह दिया वह परम सत्य है।अगर आप किसी की भी बात को अंधश्रद्धा से मान लेंगे तो आप में चिंतन-मनन करने की इच्छा शक्ति नष्ट हो जाती है और दूसरों के द्वारा कहे गए के अनुसार अपने जीवन को जीते जाते हैं। खैर! यहाँ मेरा उद्देश्य किसी की निंदा करना नहीं है मगर सच्चाई कुछ ऐसी ही है।
तथागत बुद्ध के मार्ग पर चलने के लिए मेहनत की जरूरत होती है। यहाँ शारीरिक मेहनत की बात नहीं कह रहा हूँ बल्कि मानसिक मेहनत की जरूरत होती है। श्रुतिमयी प्रज्ञा, चिंतनमयी प्रज्ञा एवं भावनामयी प्रज्ञा का अत्यंत उपयोग है इसीलिए अक्सर लोग कहते हैं कि बौद्ध धर्म एवं दर्शन कठिन है।बौद्ध धर्म एवं दर्शन का अभ्यास एवं अध्ययन करना सबके वस की बात नहीं है,ऐसा कुछ लोग मानते हैं। ये बात सत्य है मगर असंभव नहीं है कि अध्ययन एवं अभ्यास किया ही नहीं जा सकता है। अगर ऐसा होता तो आज 2565 वर्षों तक इसकी महत्वता कैसे रह पाती।
शाक्यमुनि तथागत बुद्ध एक ऐतिहासिक बुद्ध हैं जो कि हमारे काल में हुए हैं। हम उनके जीवन से सीख सकते हैं, उनके मार्ग पर चलकर अपना तथा बहुजनों का कल्याण कर सकते हैं। बुद्ध भले ही शारीरिक रूप से हमारे समक्ष उपस्थित न हों मगर उनका ज्ञान त्रिपिटक के रूप में उपलब्ध है जो कि विश्व की सभी परम्पराओं में से विशाल एवं गंभीर है। अच्छी बात कि हमारे लिए विभिन्न भाषाओँ में उपलब्ध है। हम उसे पढ़कर, सुनकर अभ्यास कर सकते हैं तथा अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
बुद्ध पूर्णिमा अर्थात वैशाख पूर्णिमा तो हर वर्ष आयेगी मगर जो वक्त बीत जायेगा वो कभी वापस नहीं आयेगा इसलिए मेरा मानना है कि जितना हो सके बुद्ध धर्म एवं दर्शन का आत्मसात करें तभी सही मायने में बुद्ध पूर्णिमा मनाने का सच्चा अर्थ सिद्ध होगा अन्यथा बुद्ध पूर्णिमा के वर्षों की संख्या तो याद रहेगी मगर हमने क्या पाया या सीखा उसे बता पाना कठिन होगा।
अंत में,मैं त्रिविध पावन बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर आप सभी को इष्ट मित्रों सहित शुभकामनायें देता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि इस पावन बुद्ध पूर्णिमा से लेकर बुद्धत्व प्राप्ति तक सत्य धर्म के मार्ग में आरूढ़ होंगे। आप सभी को नमोबुद्धाय!
thank you and happy Buddha Purnima
Happy Buddha Purnima Namo Buddhay
Wish u a very Happy Buddha Purnima.
Happy budhh purnima🙏
Awesome dir
Wish you a happy Buddha Purnima!
Happy budh Purnima mama ji 🙏